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कविता

लिखे चला जाता था

मंगलेश डबराल


आखिरकार मैंने देखा पत्नी कितनी यातना सहती है। बच्चे बावले से घूमते हैं। सगे-संबंधी मुझसे बात करना बेकार समझते हैं। पिता ने सोचा अब मैं शायद कभी उन्हें चिट्ठी नहीं लिखूँगा।

मुझे क्या था इस सबका पता
मैं लिखे चला जाता था कविता।


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